Monday, August 27, 2012

ये कैसी शिक्षा

हाल में एक फि़ल्म देखी-‘बिफ़ोर द रेन्स‘। राहुल बोस और नन्दिता दास की। कहानी अंग्रेज़ों के ज़माने की, पर आज भी प्रासंगिक। सुजानी (नन्दिता दास) एक अंग्रेज़ अफ़सर के घर पर काम करती है। शादीशुदा है। तब भी शादीशुदा अंग्रेज़ अफ़सर से ‘प्यार‘ कर बैठती है। जंगल में दोनों को गाँव के दो बच्चे देख लेते हैं। पति को पता लग जाता है। सुजानी अंग्रेज़ अफ़सर के पास पहुँच जाती है। बात खुलने के भय से अंग्रेज़ अफ़सर अपने ड्राइवर डीके (राहुल बोस) से उसको गाँव से बाहर भेजने को कहता है। दिल टूटने पर सुजानी, डीके के पिस्टल से ख़ुद को गोली दाग लेती है। फि़ल्म तो आगे भी चलती है। अन्त कहीं और होता है, मगर कहानी का मूल सार वही, जो आज शिवानी भटनागर, मधुमिता शुक्ला, कविता चैधरी, भँवरी देवी, अनुराधा बाली ‘फि़ज़ा‘ और गीतिका शर्मा का है। इन सभी ने शादीशुदा मर्दों की जि़न्दगी में झाँका और नतीजतन, ख़ुद ही जि़न्दगी से हार गयीं। जि़न्दगी लूटने वाले कुछ ‘रावणों’ को सज़ा मिली तो कुछ आज भी बाँसुरी बजा रहे हैं-चैन की।
सनातन संस्कारों में दीपावली पर माता लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश की पूजा का विधान है। वजह है इसकी। लक्ष्मी आती हैं तो लोग लक्ष्मी पुत्र बन जाते हैं। यानी धन पुत्र, पूँजी पुत्र। पूँजीवाद सत्ता दिलाता है। सत्ता में मदहोशी होती है और मदहोशी में तीन ‘डब्ल्यू‘ का शौक जागता है। तीन डब्ल्यू-वेल्थ, वाइन, वूमेन। वरिष्ठ अधिकारी आर. के. शर्मा, बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी, राजस्थान के मदेड़ना, हरियाणा के चन्द्रमोहन और गोपाल गोयल ‘काण्डा‘, सभी को मदहोशी में यही रोग लगा। सबको एक डब्ल्यू-‘वूमेन‘ ने सियासी मैदान से बाहर कर दिया। पुरुष प्रधान समाज में ‘रावणों‘ की गिद्ध दृष्टि की कमी न तो कभी रही है, न है और न रहेगी, लेकिन मातृपूज्य के रूप में स्वीकार्य अपने देश की नारियाँ शिक्षित बन कर यह कौन सा सन्देश देना चाहती हैं। ढाई अक्षर के शब्द के नाम पर शादीशुदा मर्दों के जीवन में शामिल होना आखि़र इन सबने कहाँ से सीखा। शिवानी भटनागर-वरिष्ठ पत्रकार, मधुमिता शुक्ला-कवयित्री, कविता चैधरी-प्रोफेसर, अनुराधा बाली-हरियाणा सरकार की वकील, गीतिका शर्मा-एयर होस्टेस। लोक गायिका भँवरी देवी को छोड़ दें तो ये सभी उच्च सुशिक्षित। तब कमी कहाँ रह गयी स्वच्छ समाज के निर्माण का ताना-बाना बुनने में। आज वह समाज तैयार हो गया है, जिसमें पूनम पाण्डे ट्विटर पर अपने प्रशंसकों की संख्या बढ़ाने के लिए पोर्न स्टार सनी लियोन से प्रतिस्पर्धा करती हैं। भारतीय क्रिकेटरों ने टूर्नामेण्ट जीतना छोड़ दिया। जीतते तो पूनम नंगी हो जातीं। वैसे तब भी हाल में पूनम ने नग्न तस्वीर खिंचा ही डाली।
बहरहाल, बात शुरू हुई थी विवाहेत्तर सम्बन्धों के मकड़जाल से तो इन घटनाओं का मन्थन करने के बाद दो प्रमुख ख़ामियाँ सामने ही नज़र आती हैं। पहली, इनके व इनके परिजनों के कमज़ोर संस्कार और दूसरे, प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा प्रणाली का दोष। बच्चों को संस्कारित करने के लिए ज़रूरी है माता-पिता पहले स्वयं संस्कारित हों। शिक्षा प्रणाली में बदलाव का मुद्दा एक वृहद विषय है। उस पर चर्चा फिर कभी। फिलहाल, दोनों मुद्दों पर जनजागरण आन्दोलनों की ज़रूरत है। पहल का इन्तज़ार है। शेष फिर...