Tuesday, November 15, 2011

धर्म की राजनीति का विरोध क्यों

अक्सर लोग कहते हैं की धर्म की राजनीति नहीं होनी चाहिये, विकास की राजनीति होनी चाहिये. पहली बात तो यह कि जब धर्म की राजनीति नहीं होगी तो क्या अधर्म की राजनीति होगी. जी हाँ! तभी तो आज अधर्म की राजनीति का बोलबाला हो चला है. आज अधिसंख्य व्यक्तियों की ज़ुबान पर यही शब्द रहते हैं, ‘राजनीति बहुत गन्दी हो गई है. राजनीति में तो गुण्डे-बदमाश सफल होते हैं.’ धर्म से तो सतत विकास होता है तो विकास की राजनीति के लिए धर्म की राजनीति को छोड़ देना मेरी समझ से परे की बात है.
गाँधी के अनुयायी कांग्रेसी जब ऐसी नीतियाँ बनाते और उन्हें लागू करते हैं तो वे गाँधी का ही विरोध करते हैं. दो वजहें हो सकती हैं. या तो उन्होंने गाँधी को पढ़ा नहीं या फिर वे गाँधी को मानते हैं, गाँधी की नहीं. गाँधी ने कहा था, ‘धर्म के लिए राजनीति छोड़ देने का कोई सवाल ही मेरे लिए नहीं है…मेरी राजनीति के मूल में भी धर्म ही है. राजनीति में जब मैंने भाग लेना शुरू किया, तब भी उसमें अपने जीवन का नियमन करने वाले इस सिद्धान्त की कभी उपेक्षा नहीं की.’ लेकिन हमें तो कृष्ण, विदुर, रावण की राजनीति पढ़ाई ही नहीं जाती. शुक्र है कि कुछ विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में चाणक्य और गाँधी को जगह दे दी है. गाँधी ने राजनीति में ‘राज’ से अधिक ‘नीति’ को महत्व दिया और ‘रामराज्य’ को अपना आदर्श घोषित किया था. लेकिन हम तो राजनीति विज्ञान पढ़ते हैं, राजनीति शास्त्र नहीं. राजनीतिक दर्शन के जनक प्लेटो का राजनीति शास्त्र समाज, राज्य, नैतिकता, धर्म आदि सभी का सामूहिक अध्ययन है. जब वह ‘आदर्श राज्य’ की बात करते हैं, तो वहाँ राज्य के भावी स्वरूप की ओर इशारा करते हैं. लेकिन परम्परागत राजनीति विज्ञान के पिता अरस्तू ने नीतिशास्त्र को राजनीति से अलग करके राजनीतिक दर्शन के स्थान पर राजनीति विज्ञान को स्थापित किया और उसे वैज्ञानिक मान्यताओं व पद्धतियों का आधार दिया. बस, राजनीति शास्त्र के राजनीति विज्ञान बनते ही राजनीति से धर्म और नैतिकता ग़ायब होती चली गयी. आज के ‘राज’ की ‘नीति’ कुछ ऐसी हो गई है कि कई केन्द्रीय मंत्रियों सरीखे शासक अपने ऐशो-आराम में कोई कमी करना नहीं चाहते, भले लाखों लोगों को दो जून की पर्याप्त कैलोरी भी नसीब न होती हो. क्या देशवासियों के अभिभावक-राजनेता इस दिशा में सोचने के लिए कुछ समय निकालेंगे.

2 comments:

  1. bhaisaab dharm ka arth logu ne doosare tarike se lena shuru kar diya hai. isliye yah sab ho raha hai...

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  2. रघुवीर वाकई तुम्हारी कलम बता रही है कि तुम एक निष्ठावान पत्रकार हो जिस बेबाकी से तुम राजनीति पर सवाल खड़े कर रहे हो बेहद सटीक हैं...सभी लेख विचारणीय हैं...बहुत-बहुत बधाई ...जागरण जंक्शन वाला ब्लाग भी बेहतर है..अलग-अलग विषयों पर चर्चा छेड़ी है।

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