सम्मान के योग्य खुशवंत सिंह ने एक आलेख में लिखा था कि अफज़ल गुरु की फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर देना चाहिए. उनका तर्क है कि अफज़ल की मौत से कश्मीरी युवकों में विद्रोह फैलेगा, जिसकी परिणति आतंकवाद में वृद्धि के रूप में होगी. ऐसा होने की सूरत में अफज़ल के साथी उसे ताजिंदगी तो ‘तिहाड़’ में रहने नहीं देंगे. 1999 के अफगानिस्तान से विमान अपहरणकांड का रीमेक कर फिरौती के रूप में गुरु को मांग लेंगे. दरअसल, 13 दिसंबर, 2001 के हमले में कोई नेता-मंत्री नहीं मारा गया था. संसद परिसर में नौ बेगुनाह मारे गए थे, अन्यथा गुरु अभी तक रंग-बिल्ला, सतवंत-केहर के परिवार में शामिल हो गया होता.
शहीद भगत सिंह और दुर्दांत अफज़ल गुरु के फांसी प्रकरणों की तुलना की जाये तो अनेक बिन्दुओं पर आज के उन सियासतफरोशों के मुंह से बोल नहीं निकलेंगे, जो गुरु की फांसी को माफ़ करने की वकालत करते हैं. ग़ौर करें, भगत सिंह ने असेम्बली में धमाका किया था. अफज़ल ने संसद पर हमला किया. असेम्बली बमकांड में कोई जनहानि नहीं हुई थी. संसद हमलाकांड में नौ निर्दोष लोगों को परिवारवालों को रोता-बिलखता छोड़कर असमय जाना पड़ा. असेम्बलीकांड में कांग्रेस कोई औपचारिक प्रस्ताव भी नहीं ला सकी थी और अंग्रेजों के भगत सिंह को सजा-ए-मौत के फरमान पर हस्ताक्षर कर दिए थे. लेकिन अफज़ल की फांसी का उसी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आजाद सरीखे नुमाइंदे विरोध करते हैं. बापू ने अपने अहिंसा के मंत्र की सिद्धि के कारण ही भगत सिंह को शहीद होने दिया, मगर हिंसा बर्दाश्त नहीं की, जिसके लिए भारतीय समाज का एक तबका आज तक उन्हें दोषी मानता है. तब खुद को गाँधी का इकलौता वारिस कहलवाने वाले कांग्रेसी अफज़ल की फांसी का विरोथ क्यों करते हैं? क्या अहिंसा का जाप करने वाले महानुभावों की नज़र में गुरु का कुकृत्य हिंसा नहीं? क्या वह अहिंसा की श्रेणी में आता है?
शहीद भगत सिंह और दुर्दांत अफज़ल गुरु के फांसी प्रकरणों की तुलना की जाये तो अनेक बिन्दुओं पर आज के उन सियासतफरोशों के मुंह से बोल नहीं निकलेंगे, जो गुरु की फांसी को माफ़ करने की वकालत करते हैं. ग़ौर करें, भगत सिंह ने असेम्बली में धमाका किया था. अफज़ल ने संसद पर हमला किया. असेम्बली बमकांड में कोई जनहानि नहीं हुई थी. संसद हमलाकांड में नौ निर्दोष लोगों को परिवारवालों को रोता-बिलखता छोड़कर असमय जाना पड़ा. असेम्बलीकांड में कांग्रेस कोई औपचारिक प्रस्ताव भी नहीं ला सकी थी और अंग्रेजों के भगत सिंह को सजा-ए-मौत के फरमान पर हस्ताक्षर कर दिए थे. लेकिन अफज़ल की फांसी का उसी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आजाद सरीखे नुमाइंदे विरोध करते हैं. बापू ने अपने अहिंसा के मंत्र की सिद्धि के कारण ही भगत सिंह को शहीद होने दिया, मगर हिंसा बर्दाश्त नहीं की, जिसके लिए भारतीय समाज का एक तबका आज तक उन्हें दोषी मानता है. तब खुद को गाँधी का इकलौता वारिस कहलवाने वाले कांग्रेसी अफज़ल की फांसी का विरोथ क्यों करते हैं? क्या अहिंसा का जाप करने वाले महानुभावों की नज़र में गुरु का कुकृत्य हिंसा नहीं? क्या वह अहिंसा की श्रेणी में आता है?
No comments:
Post a Comment